व्रत रखने से कैंसर का खतरा वाकई कम होता है? जानें सच्चाई!
व्रत रखने से शरीर में प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा बढ़ जाती है, जो कोशिकाओं को कैंसर से होने वाले गंभीर नुकसान से बचाने में सहायक हो सकती है।
कैंसर और उपवास: क्या फास्टिंग से कम हो सकता है कैंसर का खतरा?
कैंसर एक खतरनाक और जानलेवा बीमारी है, जिसका इलाज काफी कठिन होता है। इसे रोकने और नियंत्रित करने के लिए दुनिया भर में कई प्रकार के शोध चल रहे हैं। हाल ही में एक रिसर्च में यह सवाल उठाया गया है कि क्या उपवास रखकर कैंसर से निजात पाई जा सकती है? मेमोरियल स्लोअन केटरिंग कैंसर सेंटर के एक अध्ययन में यह बताया गया कि व्रत रखने से कैंसर के सेल्स किस तरीके से प्रभावित होते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सच में उपवास के कारण कैंसर का खतरा कम होता है?
क्या उपवास से कम होगा कैंसर का रिस्क?
व्रत रखने से शरीर में एक प्राकृतिक डिफेंस सिस्टम मजबूत होता है। इस वजह से नेचुरल किलर सेल्स बेहतर ढंग से काम करते हैं और इम्यून सिस्टम कैंसर सेल्स पर प्रभावी ढंग से अटैक करता है। उपवास के दौरान शरीर में एंटीऑक्सीडेंट का स्तर बढ़ता है, जिससे कोशिकाओं को कैंसर से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
उपवास और कैंसर का रिश्ता
चूहों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि उपवास रखने से शरीर का नेचुरल डिफेंस सिस्टम और भी मजबूत हो जाता है। इससे नेचुरल किलर सेल्स की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है, जो कैंसर सेल्स पर सीधे आक्रमण करती हैं। उपवास के दौरान ये सेल्स ग्लूकोज के बजाय फैट का उपयोग करती हैं, जिससे उन्हें कैंसर सेल्स को नष्ट करने में मदद मिलती है। इस शोध से यह भी पता चला कि उपवास की वजह से ट्यूमर के वातावरण में भी ये सेल्स उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे कैंसर से लड़ने की उनकी क्षमता और भी बढ़ जाती है।
पहले के शोध और फायदे
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2012 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि शॉर्ट-टर्म फास्टिंग हेल्दी सेल्स को कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट्स से बचा सकती है। जब चूहों पर इस अध्ययन को किया गया, तो यह देखा गया कि उपवास के चलते शरीर में स्वस्थ कोशिकाएं कीमोथेरेपी के विषाक्त प्रभावों से सुरक्षित रहती हैं।
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2016 के एक अन्य शोध में भी यह पाया गया कि कीमोथेरेपी से पहले शॉर्ट-टर्म फास्टिंग टॉक्सिसिटी को कम कर सकती है। यह शोध दर्शाता है कि उपवास के माध्यम से कीमोथेरेपी के दौरान शरीर में उत्पन्न होने वाले विषाक्त पदार्थों की मात्रा को कम किया जा सकता है, जिससे इलाज की प्रक्रिया अधिक सुरक्षित और प्रभावी हो जाती है।
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जर्मन कैंसर रिसर्च सेंटर के एक अध्ययन में यह बात सामने आई कि इंटरमिटेंट फास्टिंग (अंतराल पर उपवास) फैटी लीवर, लीवर की सूजन और लीवर के कैंसर के जोखिम को कम कर सकता है। यह शोध इस बात की पुष्टि करता है कि नियमित अंतराल पर उपवास रखने से लीवर से संबंधित बीमारियों और कैंसर का खतरा कम किया जा सकता है।
कैंसर का निदान और उपवास की भूमिका
कई प्रकार के कैंसर धीरे-धीरे बढ़ते हैं और इनके लक्षण दिखने में कई साल लग सकते हैं। कभी-कभी नियमित जांच या कैंसर की जांच के दौरान कैंसर का पता चलता है। कैंसर का सही निदान करने में समय लग सकता है और इसके लिए विभिन्न परीक्षणों का उपयोग किया जाता है। हालांकि, शोधकर्ताओं का मानना है कि उपवास के माध्यम से न केवल कैंसर का खतरा कम किया जा सकता है बल्कि इसके निदान और इलाज में भी मदद मिल सकती है।
निष्कर्ष
उपवास के माध्यम से कैंसर के खिलाफ लड़ाई में सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो रहे हैं। यह अध्ययन दर्शाता है कि उपवास रखने से शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाया जा सकता है, जो कैंसर सेल्स के खिलाफ प्रभावी ढंग से काम करती है। हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि उपवास को एकमात्र उपचार नहीं माना जा सकता। कैंसर से बचने और इसके इलाज के लिए उपवास को अन्य चिकित्सा उपायों के साथ मिलाकर देखा जाना चाहिए। इस दिशा में और भी शोध की आवश्यकता है ताकि यह समझा जा सके कि उपवास किस प्रकार से कैंसर के इलाज में सहायक हो सकता है।
उम्मीद है कि आने वाले समय में उपवास और कैंसर के बीच संबंध को और बेहतर ढंग से समझा जा सकेगा, जिससे इस जानलेवा बीमारी के खिलाफ लड़ाई में एक नई दिशा प्राप्त होगी।
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